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तिलकेश्वर धाम : एक अध्ययन यात्रा – डाॅ. रंगनाथ दिवाकर

तिलकेश्वर धाम : एक अध्ययन यात्रा 

— डाॅ. रंगनाथ दिवाकर

M – 8709610336

इमेल – [email protected]

भाइजी श्री राजीव लोचन चौधरीक 97 वर्षीय माता सविता चौधराइनक श्राद्धमे गाम गेल छलहुँ। ओतहिसँ बाबा तिलकेश्वरनाथ महादेवक दर्शन केर योजना बनल। कतेक दिनसँ एकर कार्यक्रम बनैत छल मुदा सफलीभूत नहि होइत छल। एहि बेर जेना तिलकेश्वरनाथ कृपा कऽ देने होथि।तिलकेश्वर मन्दिरमे लागल शिलालेख देखबाक उत्कंठा छल। बच्चाभाइ श्री सुरेन्द्र शैल आ भ्राता श्री पंकज कुमारक संग हमसभ गाड़ीसँ विदा भेलहुँ। सुलतानपुरसँ सतीघाट, हरौली, बुचौली कोठी, सहोरबाघाट, पंचवटी, झझरा, चिगरी, लेरिझाघाट होइत बिथान अयलहुँ। फेर फुइया बाँध होइत तिलकेश्वर आबि गेलहुँ।

तिलकेश्वर स्थान भौगोलिक दृष्टिसँ चारि जिला – दरभंगा, समस्तीपुर, सहरसा आ खगड़ियाक संगमनी स्थल अछि। एकर उत्तर दिशि गोलमा, गोरधइ, अरथुआ, तेगच्छा, कुञ्जभवन आदि गाम अछि। दक्षिणमे गम्हरिया, फुलतोड़ा, ज्वालापुर, चिकनी आदि गाम अवस्थित अछि। पश्चिममे बहबा, बथौल आदि गाम एवं पूरबमे सहरबन्नी, मुशहरिया, कोसियार, पिपरा आदि गाम अछि। पूर्व केर प्रसिद्ध क्षेत्र फड़किया नाम आब विलुप्त भऽ गेल अछि मुदा एकर स्मृति एहि क्षेत्रमे देखल जा सकैछ। भारतवर्षक पूर्व मान. केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवानजीक गाम सहरबन्नी लऽगे अछि।

तिलकेश्वर मन्दिरक चित्र (2023) 

    

तिलकेश्वर मन्दिरक चित्र (2011)

 

तिलकेश्वरधाममे बाबा तिलकेश्वरनाथक करिया पाथर केर मोटगर शिवलिंग केर दर्शन-पूजन बाद मन्दिरक प्रवेशद्वार केर प्रस्तर चौकठिमे उत्कीर्ण शिलालेख केर अवलोकन कएलहुँ। तीनटा शिलालेख प्रवेशद्वार केर एकहि प्रस्तर केर चौकठिमे मिथिलाक्षरमे उत्कीर्ण अछि। शिलालेख बहुत सीमा धरि घिसा गेल अछि आ सहजतासँ पठनीय नहि रहि गेल अछि। खल्ली लगा पोछि-पाछिकेँ पढ़बाक प्रयास कएलहुँ।                                

                  तिलकेश्वर शिलालेख (2023)

तिलकेश्वर शिलालेख (2023) प्रो. राधाकृष्ण चौधरी अपन मिथिलाक इतिहास (श्रुति प्रकाशन, दिल्ली, 2010, ISBN 9789380538280, पृष्ठ 266)मे तिलकेश्वरगढ़ अभिलेख विषयक वर्णन दैत कहैत छथि जे एहिमे रानी सौभाग्य देवी, मंत्री कर्मादित्य आ हैहट्ट भगवतीक उल्लेख भेल अछि। हुनका अनुसार शिलालेखमे लिखल अछि—

अब्देनेत्र शशांकपक्ष गणिते श्री लक्ष्मणाक्ष्मपतेर्मासि श्रावण संज्ञकें मुनि तिथौ र्त्वात्यांगुरुउशोभने। 

हावीपत्तन संज्ञकें सुविदिते  हैहट्टदेवी  शिवा  कर्मादित्य  सुमंत्र्विणेह  विहिता  सौभाग्य  देव्याज्ञा।

बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी, पटना द्वारा प्रकाशित प्रो. राधाकृष्ण चौधरीक मिथिलाक इतिहास (ISBN 9789385792939, 2021, पृष्ठ 351-52)मे एहि शिलालेख विषयक पाठान्तर अछि – अब्देनेत्र शशांकपक्ष गणिते लक्ष्मणादयपतेर्मासि श्रावण संज्ञके मुनि तिथौ स्वास्यगुरुशोभने। हावीपत्तन संज्ञके सुविदिते हैहट्टदेवी शिवाकर्मादित्य सुर्मंत्रिणेह विहिता सौभाग्य देव्याज्ञा। अपन पोथी Selected Inscriptions of Bihar (1958, पृष्ठ 18) आओर मिथिलाक इतिहास (पृष्ठ 260)मे प्रो. चौधरी लगभग एहिना एहि शिलालेख केर मूल देने छथि—

पूर्वमे उद्धृत पद …सौभाग्य देव्याज्ञा केर बादक पंक्ति एहि प्रकार देल गेल अछि—

मिथिलायां हावीडीहेति  प्रसिद्धे  देवी सिंहासन  शिलायामुत्कीर्णमस्तीति।

तथैव तिलकेश्वरशिवमठे कर्मादित्य नाम्नैव कीर्त्ति शिलायामुत्कीर्णमस्ति।। 

तीनू पोथीमे उद्धृत किछु शब्द खंडमे अन्तर अछि। ई पाठान्तर टंकण केर अशुद्धि भऽ सकैछ। मुदा आश्चर्यजनक तथ्य अछि जे तिलकेश्वर केर मूल शिलालेखमे एहन कोनो बात नहि अभरल। तिलकेश्वर मन्दिरक मूल शिलालेखमे किछु शब्द तऽ अखनो पठनीय अछि जेना शाके 1258 कार्तिक शुदि 1, कर्मादित्य केर नाम आदि। एहि तीनू पोथीमे तिलकेश्वर स्थान शिलालेख विषयक उद्धृत वर्णन तिलकेश्वर केर मूल शिलालेखमे नहि अभरैत अछि। कतबो मंथन कयल मुदा सौभाग्य देवी एवं हैहट्ट भगवती केर उल्लेख नहि भेटल। पं. भवनाथ झा लब्धप्रतिष्ठ शोध त्रैमासिक मिथिला भारतीक भाग 5, अंक I-IV, वर्ष 2018, पृष्ठ 191-192मे तिलकेश्वर स्थान शिलालेखक तीनू भाग केर मिथिलाक्षरसँ देवाक्षरमे लिप्यंतरण एहि प्रकार कएने छथि—

  1. कारितो मण्डपः शम्भो: कैलाशशुचभूतले। 

     प्रजापुत्रवसुर्नित्यं कुरु मद्विघ्नतारक।। 

  1. कर्म्माणि दुज श्रीशङ्करः शिल्पि श्री श्री 

      पातु शाके 1258 कार्तिक शुदि 1 

  1. द्विजवंशाब्धिशीतांशुतेज:शर्म्मकुलश्रिया। 

     बोधि(धिं) समासृत(तं) श्रीमत्कर्म्मादित्येन मन्त्रिणा।। 

यैह पाठ शुद्ध लगैत अछि। भाव अछि जे कैलास समान पवित्र एहि भूखण्डपर ई शिव मंडप बनल अछि। हमरा विघ्ननाशक भगवान् प्रजा, पुत्र, सम्पदादिसँ संयुक्त करथि। शक् संवत् 1258 कार्तिक प्रतिपदा तिथिकेँ एकर निर्माण द्विज श्रीशंकर पूर्ण करओलनि। देवी लक्ष्मी हुनक रक्षा करथि। द्विज वंश समुद्रमे उद्भूत चन्द्रमा समान धवल कुल केर ज्ञानी मंत्री श्रीमान् कर्मादित्य छलाह।

ओना ई तथ्यात्मक अछि जे तिलकेश्वर मन्दिरक चौकठिमे लागल एहि शिलालेख केर बहुत अक्षर घिसा गेल अछि। शिलालेख केर तीनू भाग एकहि चौकठिपर दू-दू पंक्तिमे एक साथ उत्कीर्ण अछि आ तीनूक बीचमे काफी स्थान छुटल अछि। चौकठि केर एक भागमे एक पद मात्र अछि जखन कि दोसर भागमे दू पद अछि। पहिल भागमे संभव जे शिलालेख केर पहिल पद हो किएक तऽ ओतए केर स्थान सपाट भऽ गेल अछि। संभव जे ओहि ठाम पद हो जे आब घिसाकेँ लुप्त भऽ गेल हो। उपलब्ध शिलालेख पढ़बामे जे व्यतिक्रम अबैछ ओ सेहो एहने संकेत करैत अछि।

तिलकेश्वर मन्दिरकमुख्य द्वार

 

तिलकेश्वर मन्दिरक चौकठि          

                                                                                                  

 

इहो महत्त्वपूर्ण अछि जे ई चौकठि अत्यन्त भव्य आ कलापूर्ण ढंगसँ सजाओल गेल अछि। पाँच स्तरमे एकर ऊपरी भाग बाँटल गेल अछि। पहिल तिलकेश्वर मन्दिरक चौकठि आ मुख्य द्वार आ दोसर स्तर एकहि प्रस्तर खंडसँ तैयार लगैत अछि। एहि भागमे पुष्प सभक कलात्मक साज-सज्जा उकेरित अछि। एकर मध्यमे पद्मासन मुद्रामे बैसलि गजलक्ष्मी देवी केर आकृति उत्कीर्ण अछि जनिका दू टा गजराज सूँडसँ कलश उठा जलाभिषेक करैत देखाइत छथि। भारतीय स्थापत्य कलामे गजलक्ष्मीक चित्र उकेरित करब प्राचीन कालसँ प्रचलित अछि। भरहुत, साँची, रत्नागिरि (ओडिशा), बोधगया, उज्जैन, बस्तर केर टेमरा आदि स्थलपर गजलक्ष्मीक प्रतिमा उत्कीर्ण अछि। सातवाहन राजवंश आ नलवंश केर राजमुद्रापर गजलक्ष्मी विराजमान छलीह। अनेक आर स्वर्ण-रजत-ताम्र मुद्रापर गजलक्ष्मीक चित्र विराजमान अछि। गजलक्ष्मी कतहु द्विभुजी आ कतहु चतुर्भुजी रूपमे चित्रित गजलक्ष्मी (2011) गजलक्ष्मी (2023) छथि। तिलकेश्वर केर गजलक्ष्मी द्विभुजी छथि। नालयुक्त कमल एकदम स्पष्ट अछि। एहि कमलनाल केर अवस्थिति गजलक्ष्मीक चित्रकेँ चतुर्भुजी होएबाक भ्रम उत्पन्न करैत अछि। गजलक्ष्मीक एहि आकृतिमे कर्णाट कालीन कमनीयताक अभाव अछि। ओना ई पूर्णतया संभव अछि जे ई मूर्त्ति सेहो मनोहारी रहल हो मुदा जल-फूल केर छींटा (ऊँचाईपर अवस्थित रहबाक कारणेँ चुरुमे जल लऽ फेकला)सँ एकर कमनीयता क्षरित भेल हो। ओना ई तय अछि जे जल-फूल चढ़ा श्रद्धालुजन एहि ऐतिहासिक शिलालेखकेँ सेहो एक दिन समाप्त कऽ देताह जेना आन कतेक शिलालेख वा ऐतिहासिक महत्त्व केर सामग्री सभकेँ समाप्त कऽ देलनि। जल-फूल अक्षत-चानन लेल तऽ मन्दिरमे करिया पाथर केर मोटका शिवलिंग विराजमान छथिए। भले लगातार जलपात्रसँ खसैत जल-धार केर प्रहार सहैत-सहैत ओ खुरदरा किएक नहि भेल होथि। श्रद्धा अछि तखन हुनकेपर जल चढ़ाउ। इतिहास जाहि वस्तुसँ वा शिलालेखसँ अभरैत अछि ओहि सभकेँ तऽ नष्ट नहि कयल जाय। मुख्य शिवलिंग, अरघा आ जलढरीक सूक्ष्मतापूर्वक अवलोकन कएलहुँ मुदा ओहि सभपर कोनो शिलालेख उत्कीर्ण नहि अछि।

                                                              तिलकेश्वर शिलालेख

चौकठि केर तेसर स्तर बेसी कलात्मक ढंगसँ सजाओल गेल अछि। एहिमे नृत्य करैत आ विभिन्न वाद्ययंत्र बजबैत नारी सभक कमनीय चित्र उत्कीर्ण अछि। सम्पूर्ण चौकठि कर्णाटकालीन कलाक कमनीयता केर प्रतिछवि प्रस्तुत करैत अछि। चौकठि केर वामभागमे कलशधारिणी, चाँवरधारिणी, धनुषधारिणी और असिधारिणी नारी सभक चित्र उकेरित अछि। एहि वामभाग केर पहिल-दोसर चौकठि केर मूलमे त्रिभंग मुद्रामे चित्रित एक स्त्रीक आकृति अत्यन्त मनोरम अछि। एहिमे वक्ष आ कटि केर मोहक निरूपण भेल अछि। एहि चौकठिमे आगाँ कोनो मानव आकृति नहि अछि मुदा पुष्प सभक आकर्षक कलाकारीसँ ई चौकठि बहुत सुन्दर लगैत अछि। तेसर चौकठि केर नीचासँ ऊपर क्रमशः असि धारिणी नारी, नृत्यरत युवती, धनुष धारिणी स्त्री, कलश धारिणी कामिनी उत्कीर्ण अछि। माथपर कलश धारिणी वसनहीना एहि कामिनीक पएरमे एक वानर आकृति लटपटायल अछि। एकरा ऊपर केर चित्रमे वैह वानर आकृति एक अनावृत्त पुरुष आकृति केर जननांगसँ केलि करैत देखाइत अछि। इहो आश्चर्यजनक अछि जे एहि चौकठि केर दहिना कात दोसर दिशि केर चित्र सभ लुप्तप्राय भऽ गेल अछि। घिसा गेल अछि। गहनतापूर्वक देखलासँ लगैत अछि जे एहि चौकठि सभक संयोजन वर्तमान मन्दिर निर्माण कालमे एहि परिसरमे उपलब्ध विभिन्न प्रस्तरखंड सभसँ भेल अछि। एहि पाषाण स्तम्भ सभक कालखंड अलग-अलग लगैत अछि। रंगमे सेहो पार्थक्य अछि। चौकठि केर चारू भाग समरूप नहि अछि। ई संकेत करैत अछि जे विभिन्न कालीन प्रस्तर खंड सभक संयोजनसँ एहि मन्दिरक वर्तमान चौकठि सजाओल गेल अछि।

एहि मन्दिरक बाहर राखल मूर्त्तिक एक भग्नावशेष सेहो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अछि। एकरे लऽग एक पूर्वाभिमुख बसहा केर निर्माण बादमे कराओल गेल अछि। आधुनिक कालमे निर्मित एहि बसहाक मुख महादेव दिशि नहि भऽ पार्वती मन्दिर दिशि किएक अछि, ई नहि कहल जा सकैछ।

भगवतीक खंडित प्रतिमाक कोनो अंश अखन सुरक्षित नहि अछि। एकटा पएर केर ठेहुनसँ अधोभाग मात्र देखाइत अछि। ई सेहो कहुना चीन्हल जा सकैछ। लगैत अछि जे भगवतीक एहि चरण केर किछु भाग सिंह केर पीठपर अछि। एहि खंडित प्रतिमाक दोसर चरण केर किछु भाग पद्मासन केर समानान्तर आएल अछि। एहि चरण केर तड़बामे चक्र अंकित अछि। श्री विकास वैभव, आइपीएस केर ब्लागपर silentpagesofhistory शृंखलामे उपलब्ध कुशेश्वरस्थान थानाक निरीक्षण क्रममे फरवरी 2011मे तिलकेश्वर यात्राक जे हुनक विस्तृत यात्रा वृत्तान्त अछि ओ सरिपहुँ शोधपूर्ण अछि। इतिहासक विद्वान् आ पुराविद् सभक ध्यान एहि स्थलपर गंभीरतापूर्वक नहि पड़ल छल। विकासजी एहि स्थल केर यात्रा करैत एकर खोज-खबरि लेलनि। पुराविद् सभकेँ हुनक एहि यात्रा वृत्तान्तसँ प्रेरणा लेबाक चाही। एहिमे जे तिलकेश्वर स्थान विषयक विस्तृत जानकारी आ चित्र सब अपलोड अछि ओ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अछि। ओहि समयक पुरना फोटो सभमे खंडित मूर्त्तिक तड़बामे चक्र चिह्न स्पष्ट अभरल अछि। आब ओ नहि देखाइत अछि। जँ एहिसँ पूर्वमे कोनो विद्वान् वा पुराविद् केर नजरि पड़ल रहैत तखन संभव जे एहि भग्नावशेष विषयक किछु आर विशिष्ट जानकारी भेटैत। ई संभव नहि भेल। श्री विकास वैभवजीक यात्रा वृत्तान्तमे उपलब्ध चित्र आ वर्तमान चित्र सभमे जे फर्क अछि ओ महत्त्वपूर्ण अछि। ओ एक आर खंडित शिलाक चित्र देने छथि जेकर निचला भाग केर बनावट ओहने अछि जेहन अखन वर्तमान खंडित शिलाक अछि। सूक्ष्मतापूर्वक देखलासँ निर्धारित होइछ जे दुनू अलग-अलग शिलाखंड अछि। एहि शिलाखंडपर उत्कीर्ण प्रतिमा सभमे एक शिशु केर प्रतिमा बाँचल अछि। सूक्ष्मतापूर्वक देखलासँ यैह खंडित शिलाखंड महादेव विषयक लगैत अछि। बाँचल बालमूर्ति कुमार कार्तिक (स्कन्द) केर लगैछ। दोसर कात जे एक चरण आ दोसर पएर केर चित्र बाँचल अछि से गणपति छथि। भग्नावशेष केर नीचाँमे एक पात्रमे छओ टा मोदक स्पष्ट देखाइत अछि।                     

 खंडित प्रतिमा 2011


एकर दोसर कात उत्कीर्ण मूस केर आकृति अखनो सुरक्षित अछि। कमल केर आसनपर एक चरणचिह्न बाँचल अछि। संभव जे एतऽ भगवान् शंकर होथि जनिक एक चरण मात्र बाँचल हो। दोसर कात भगवती पार्वती सुशोभित होथि। तिलकेश्वर शिलालेखमे जे श्रीशंकर द्वारा शंकर स्थान निर्माणक बात आएल अछि ओहिसँ ई भान होइत अछि जे एहि शिलाखंडपर निर्मित शिव, पार्वती, कार्तिक आ गणपति केर प्रतिमा एहि ठामक मूल प्रतिमा छल। दोसर  भग्नावशेष रूपमे उद्धृत महिषासुर मर्दिनीक मूर्ति सेहो स्थापित छल। श्री विकास वैभवजी अन्य भग्नावशेष सभक चित्र सेहो देने छथि जे आब मन्दिर परिसरमे उपलब्ध नहि अछि। हुनक किछु चित्र सभक साभार उपयोग कयलहुँ अछि ताकि 2011 ई. सँ 2023 ई. धरि एहि स्थानमे आएल परिवर्तन स्पष्ट भऽ सकए। अनेकशः आभार श्रीमान् विकास वैभवजी!

  खंडित प्रतिमा 2023

बसहा लऽग राखल खंडित प्रतिमामे सिंह आकृति केर सामने असियुक्त असुरराज ठाढ़ लगैत छथि। ओतहि भैँसाक मुण्ड आकृति सेहो अछि। लगैत अछि जे ई खंडित प्रतिमा महिषासुर मर्दिनीक मूर्त्ति रहल होयत। एकरो निर्माण करिया पाथरसँ भेल अछि। एहि खंडित प्रतिमाक पार्श्वमे एक गजराज केर आकर्षक चित्र उकेरित अछि। एकर सटल एक आभूषण युक्त चरणचिह्न सेहो उत्कीर्ण अछि। गजराजक नीचाँ एक पुरुष आकृति ध्यान-मग्न बैसल छथि। एहि सीधमे दोसर कात सेहो एक पुरुष आकृति उत्कीर्ण अछि। एहि खंडित प्रतिमाक बाँचल भागमे यत्र-तत्र आभूषणादिसँ कर्णाटकालीन मूर्त्तिकला केर बारीक चित्रण भेल अछि मुदा हतभाग्य जे एहन भाग कम्मे बचि सकल अछि। प्रतिमा ध्वंसक कसाई केर क्रूरताक कथा कहैत अछि क्षत-

विक्षत भेल मूर्त्ति एवं ओकर आन्तरिक आक्रोश केर निशान एहि खंडित मूर्त्ति केर अवशेषपर सर्वत्र देखाइत अछि। पता नहि के छल ओ विधर्मी! मन्दिर एवं शिलालेख केर कालखंडपर विचार करब सेहो उचित।

              

हाबीडीह शिलालेखमे उल्लिखित अब्द नेत्र (2), शशांक (1), पक्ष (2)सँ लक्ष्मण संवत् 212 अर्थात् 1119+ 212 = 1331 ई. अबैत अछि। प्रो. राधाकृष्ण चौधरीजी द्वारा देल विवरणीक अनुसार लक्ष्मण संवत् 212 अर्थात् 1331 ई. क हावीडीह शिलालेख अछि। आगू डाॅ चौधरी मानैत छथि जे हावीडीह आ तिलकेश्वर केर शिलालेख कर्मादित्यसँ जुड़ल अछि। तिलकेश्वर शिलालेखमे अखनो 1258 शक् संवत् अर्थात् 1336 ई. आ कर्मादित्य केर नाम स्पष्ट रूपसँ पठनीय अछि। कर्मादित्य प्रायः कर्णाट राजा रामसिंह देव केर मंत्री रूपमे सर्वमान्य छथि। कर्णाट राजा रामसिंह देव केर समय 1227-1285 ई. प्रायः मान्य अछि। हिनके समय तिब्बती यात्री धर्मस्वामिन् 1234-36मे तिरहुत केर यात्रा नेपालसँ बोधगया जाइत-अबैत काल कएने छलाह। रामसिंह देवक जन्म 8 मार्च 1188 ई. नेपालक वंशावलीसँ आकलित अछि। ओना लुसियानो पितेक (Medieval History of Nepal, p 53ff एवं 194) केर आधारपर प्रो. राधाकृष्ण चौधरी रामसिंह देवक जन्म 1183 ई. आ धर्मस्वामिन् केर रोएरिक कृत जीवनीक अनुवाद केर आधारपर हुनक राज्यारोहण 1227 ई. मे मानने छथि (Political and Cultural Heritage of Mithila, ISBN 9789383647071, पृष्ठ 102)। रामसिंह देवक शासन प्रायः 58 वर्षक छल। रामसिंह देवक पिता नरसिंह देव (1188-1227)क उत्तरार्द्धमे सेहो कर्मादित्य मंत्री छलाह। संभव जे रामसिंह देव केर अवसानोत्तर कर्मादित्य जीविते होथि। रामसिंह देवक समय 1227मे जँ कर्मादित्यकेँ पच्चीसो वर्षक मानी तखन एहि तिलकेश्वर शिलालेखक समय 1336 ई.मे कर्मादित्यक उपस्थितिसँ हुनक आयु कमसँ कम 134 वर्ष (1227-25= 1202, 1336 – 1202 = 134) मानए पड़त। कालदोष एक बेर फेर ठाढ़ होइत अछि। मुदा जँ तिलकेश्वर स्थान शिलालेख केर सूक्ष्म अनुशीलन करी तखन ई कालदोष नहि अभरत। शिलालेखमे शक संवत् 1258 अर्थात् 1336 ई. अंकित अछि। हावीडीह शिलालेखकेँ आकलन करी तखन ओकर समय ल.सं. 212 अर्थात् 212+1119 = 1331 ई. अबैत छैक। तिलकेश्वर शिलालेखमे ई कतहु नहि अभरल अछि जे कर्मादित्य एकर स्थापना कएलनि। तिलकेश्वर शिलालेखमे एहि शिवमण्डपकेँ पूर्ण करबाक श्रेय श्री शंकरकेँ देल गेल अछि। उल्लेखनीय अछि जे कर्मादित्य केर एहि वंश परम्परामे क्रमशः देवादित्य, धीरेश्वर आ वीरेश्वर भेलाह। वीरेश्वर सुत सप्तरत्नाकरकार चण्डेश्वर महाकवि विद्यापतिक पितामहभ्राता छलाह। इहो उल्लेखनीय अछि जे कर्मादित्य अत्यन्त ज्ञानी छलाह। हुनक कीर्त्ति केर उल्लेख दुनू शिलालेखमे भेल अछि। एहन उल्लेख हुनक अवसानोत्तर सेहो कएल जा सकैछ। तेँ एहि शिलालेखसँ कोनो प्रकारक कालदोष नहि अभरैत अछि। ई संभव अछि जे सौभाग्य देवी कर्णाट राजा हरिसिंह देवक नेपाल पलायन केर बादो जीवित होथि वा इहो कहल जा सकैछ जे हरिसिंह देवकेँ नेपाल पलायन कएलाक बादो भारतीय मिथिलामे सेहो कर्णाट राजवंश एहि स्थितिमे अवश्य छल जे मन्दिर-मठ आदि केर निर्माण करा सकए। प्रो. राधाकृष्ण चौधरी कर्णाट राजा रामराजक समय मधुसूदन ठाकुर केर कण्टकोद्धारक पुष्पिकाक आधारपर कहैत छथि जे हरिसिंह देवक पलायन बाद उत्पन्न अराजक स्थिति आ ओइनवार कुल केर शासन समाप्तिक बाद उत्पन्न स्थितिमे कर्णाट लोकनि मिथिलाक स्वतंत्रताक लेल संघर्षरत छलाह। कण्टकोद्धारक पुष्पिकामे उल्लेख अछि—

इति महाराजाधिराज कर्णाट चक्रवर्ती भुजबलभीम समस्त दिग्विजयार्जित समस्त सन्तोष निखिल भूमण्डल श्रीरामराज कारितायां महामहोपाध्याय समृपकुर श्री मधुसूदन कृतावनुमान लोक कण्टकोद्धार: सम्पूर्णमिति। 

ल.सं. 529 फाल्गुन शुक्लाष्टम्यांमध्ययनशलिना श्री भूदेव शर्मा भौरग्रामेऽपूरीय मिति (प्रो. राधाकृष्ण चौधरी कृत मिथिलाक इतिहास, विदेह, सम्पा. श्री गजेन्द्र ठाकुर, अंक 48, 15 दिसम्बर 2009, पृष्ठ 38पर उल्लिखित)।

एहिमे उल्लिखित समय ल. सं. 529 अर्थात् 1648 ई. अबैत अछि। स्पष्ट अछि जे ओइनिवार वंशक सत्ता केर समाप्तिक बाद उत्पन्न अराजकताक स्थितिमे पुनः कर्णाट सभ अपन सत्ता लेल प्रयासरत छलाह। इहो स्पष्ट अछि जे मिथिलामे 17म शताब्दीमे सेहो कर्णाट सभक अस्तित्व छल भले हुनका सभक क्षेत्र अत्यंत संकुचित रहल हो। किछु एहने स्थिति तिलकेश्वर क्षेत्रमे रहल हो एवं कर्णाट सभक राजपाट वा प्रभुता तिलकेश्वर क्षेत्रमे बाँचल हो जखन 1331-36 ई. मध्य श्रीशंकर एतऽ तिलकेश्वर नाथ महादेव स्थानक निर्माण रानी सौभाग्य देवी एवं मंत्री कर्मादित्यक स्मृतिमे करओने होथि। एहि शिलालेखमे उत्कीर्ण भाव (पुत्र, प्रजा आर सम्पत्ति हेतु विघ्ननाशक भगवान् सँ कएल गेल प्रार्थना) किछु एहने संकेत करैत अछि। कमसँ कम वर्तमानमे उपलब्ध तिलकेश्वर स्थान केर शिलालेख आधारेँ एतेक तऽ निश्चित रूपसँ कहल जा सकैछ।

तिलकेश्वर शिवलिंग  (2023) 

 

तिलकेश्वर शिवलिंग  (2011)         

तिलकेश्वरधाम बाढ़ि प्रभावित क्षेत्र अछि। आवागमन केर संसाधन नीक नहि छल तेँ कुशेश्वरस्थान जकाँ प्रशस्त नहि भेल छल। तथापि प्रत्येक पावनि-तिहारमे भारी मेला लगैत अछि। महाशिवरात्रिमे परोपट्टाक लोक दर्शनार्थ उनटि जाइत छथि। अदौ कालसँ एतऽ केर एक पक्ष केर कमला मेला नामी रहल अछि। पंद्रह दिन बादो मेला समाप्त नहि होइत अछि आ सामान सभक विक्री होइते रहैत अछि। माघ शुक्ल पूर्णिमाकेँ (एहि बेर 5 फरवरीकेँ) ई मेला लगैत
अछि। एहिमे कुश्ती आ घोड़दौड़ प्रमुख आकर्षण केर केन्द्र रहैत अछि। मेलाक तीन दिवसीय दंगलमे नेपाल, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र आदि ठामक पहलवान सभक जुटान होइत अछि। मिथिलाक पहलवान सभ सेहो एहि कुश्तीमे भाग लैत छथि। अयोध्याधामक केशव दास एकर व्यवस्था देखैत छथि। एहि मेलामे घोड़ाक रेस अद्भुत होइत अछि। इलाका भरिक लोकसभ अपन बड़का – बड़का घोड़ा लऽ उत्साहपूर्वक एहि रेसमे भाग लैत छथि। शिव कुश्ती आ घोड़दौड़ केर विजेता सभकेँ चानीक तगमा, गदा, नगद आदि सम्मान— पुरस्कार भेटैछ। एहि ठामक विशिष्ट बात अछि जे जन-सामान्य  सेहो विजेता पहलवानकेँ एतेक टाका चढ़ा दैत अछि जे ढाकी भरि जाइत अछि। सुगम आवागमन लेल पुल-पुलिया सहित पक्की सड़क केर निर्माण अंतिम चरणमे छल। एकर बाद ई क्षेत्र बेस प्रशस्त होयत। हमरा सभकेँ कुञ्ज भवन गामक श्री राजो सदा आ श्री रमाकान्त सदा मनोयोगपूर्वक सत्कार कएलनि आ बहुत रास जानकारी देलनि। दुनू माम-भागिनकेँ धन्यवाद दैत हमसभ तिलकेश्वरधामसँ विदा भऽ गेलहुँ।

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