आब कतेक चुप रहू : दीप नारायण – बाकी

देशक भविष्य

गेटक-गेट

किताप आनि

इंग्लिश मिडियमक

कहैत छथि पिता…

बौआकेँ डॉक्टर बनेबाक अछि

आ माय इंजीनियर।

सम्हारति पीठ पर बस्ता

मुहचूरू भेल

विद्यालयक फील्डमे खहरैत

बेदराकेँ देख…

हमरा होइए,

देशक भविष्यकेँ एखन

कनेक आओर खेलबाक चाही

माटिमे।

 

घृणा आ प्रेम

प्रेम चाही

घृणा चाही

जे पनुघैत छैक स्वतः

कोनो गन्हाएल प्रयोगशालामे

कृत्रिम विधिसँ तैयार भेल

घृणा नहि चाही हमरा

जे परोसल जाइत अछि

स्वादिष्ठ व्यंजन जकाँ

ताज कि अशोका कि मेरेडियनक

डिनर टेबुल पर

आ कि इस्कुलिया नेनाक लांच बॉक्समे

आ कि अधिकारसँ बंचित

मधेसीक थरीयामे…

जेना जनमैछ

हरियर दुपतिया गहूमक बीच

अनगिनित नान्हि-नान्हिटा

सेनुरिया बथुआ

तहिना चाही प्रेम

कि तहिना चाही घृणा

जेना गन्हकी फतिंगा

सेबने रहैत अछि गन्ह।

 

कविताक वितानमे

हम नहि! अहूँ नहि!

एहि बातक पाछा

व्याकुल अछि

समुच्चा मानव जाति,

कौआ-चील

गाछ-वृक्ष, चुट्टी-पिपरी…

एहि फूल परहक फतिंगा सेहो

विकराल अछि ई समय

से ठीके!

हमरे-अहीँक लेल नहि

समुच्चा पिरथीक लेल…

पिरथीक अंतिम हिचकीसँ पहिने

नहि देखबामे आबि रहल अछि,

एखन ओ, कल्याणकारी नीलकंठ

जे उड़ि-उड़ि क’

अबैत छल बैसए लेल

हमरा घरक सोझाँमे

बिजलीक तार बला पोल पर

नहि पहुँचि रहल अछि कान धरि—

नमाजक आमंत्रणमे मुअज्जिनक अजानक टाहि,

महादेव मंदिरक घण्टा आ आरतीक स्वर सेहो

कू…कू…जतेक बेर कहैत छलियै हम

ततेक बेर हमर कू…कूक प्रत्युत्तरमे

आम गाछक फुनगी परसँ नित्तह

ओ कोइली अपन अवाज मिठाबए लेल

करैत रहैत छली हमरा संगे रियाज

कतए चलि गेली ओ ?

कियो नहि देखलखिन!

गाम-घर, शहर

देस-बिदेस

सिकुड़ि गेल अछि सभ

‘आइशोलेट’ भ’ चुकल छी हम

अपन घरमे, घरक एकटा कोनमे

आ दोसर कोनमे अहाँ

नहि जानि कतेक प्रकाश बर्खक दूरी पर

धर्म-अधर्म

युद्ध-महायुद्ध

अनु-परमाणु

क्रूज-मिसाइल

वर्ण-जाति

खण्ड-पाखण्ड

ढोंग-चमत्कार

भक्ति-अंधभक्ति

वेद, पुराण, उपनिषद

गीता, रामायण, कुरान…

एत’ धरि कि जासूसी उपन्यास पर्यन्त

निसबद अछि

फुटि नहि रहल छनि बकार

नहि सूझि रहल छनि कोनो उपाय

नहि लागि रहल छनि कोनो उक्ति

चौपेतले रही गेलैक उतरबरिया हन्नाक

पुबरिया कोन महक कोठीक कान्ह पर रक्षातंत्र

जेना पोखरिक पानिमे

ढेप मारलाक बाद…

डोलए लगैत छैक मुहक छाह

तहिना डोलि रहल अछि एखन पिरथी

भोरे-भोर हॉकर फेक जाइत अछि अखबार जेना

बिग देलकैक अछि कियो जुमा क’

सुरुजकेँ कारी समुद्रक बीच

ई मंगल वा कि चंद्रयात्रा नहि थिक

जकरा नापि लेबै रॉकेटसँ झट द’

ई चीन, अमेरिका, इटली

रूस, फ्रांस आ भारत… थिकि

ई पिरथी थीकि मीत

एतए दुनू पएर मात्र साधन छैक

जकरा एखन गछेर लेने अछि निठुर समय

समय एखन बटि गेल अछि

कए गोट खेमामे

आ ओ सभ खेमा आपसिमे

क’ रहल अछि वार्तालाप

तार्किक वार्तालाप !

ओहि वार्तालापसँ भ’ रहल अछि

नव-नव विचारक प्रस्फुटन

जकरा ओ सभ मौलिक कहि

बिदेसी लेबुल लागल लिफाफसँ बारह क’

पैक क’ रहल अछि पॉलोथिन बाला पन्नीमे

बात जे किछु हो मुदा,

सत्य आ बहुत कठिन वाक्य अछि—

ई समय धकिया रहल अछि हमरा सभकेँ

आ धकियबैत-धकियबैत

द’ आओत पाछू, बहुत पाछू

हमरा लोकनि चलि जाएब

आगुसँ पछिला शताब्दी दिस…

साँपक केँचुआ जकाँ

हमरा डर अछि

ताहिसँ बेसी हिम्मति अछि

ई जे अन्तिम वाक्य जे ओ कहि रलह छथि

से कोनो कवियेटा कहि सकैत छथि —

हम बचा लेबैक पिरथीकेँ अपन कविताक वितानमे

कविताकेँ डर नहि होइत छैक

बहुत निडर अछि!

ईश्वरसँ पैघ अछि कविता।

समयक घाओ पर पट्टी बन्हैत

बर्ख दू हजार बीसक पूर्वार्ध

आ लॉकडाउनक नव सभ्यतामे साँस लैत

हम किछु दिनसँ…

दस बाइ बारहकेँ एक किरायाक कोठलीमे

‘आइशोलेट’ क’ चुकल छी स्वयंकेँ

जखन कियो एसगर होइत अछि

त’ ओ स्वयंकेँ मोन पाड़ैत अछि वा ईश्वरकेँ…

 

समयक घाओ पर पट्टी बन्हैत

एहन विचार आएल हमरा मस्तिष्कमे

हम समयकेँ हैंगर पर खोँसि—

कोठलीमे हेर’ लगलहुँ किछु डायरी, फाइल्स आ किताबसभ

स्कूलक समयक पुरना डायरीक पँजरामे

तक्खा पर राखल भेटल—

ओ हम स्वयं रही

बहुत बर्खक बाद

ई कहि सकैत छी जे कए बिलियन बर्ख पहिले

पिरथीक इतिहास केर पहिल दिनसँ हमरा भीतर नुकाएल हम

फड़िच्छ भ’ क’ सोझा आएल अछि पहिल बेर

पहिल बेर साक्षात्कार भेल अछि हमरासँ हमरा

ओना हम स्वयंकेँ ताकएक प्रयास

पहिलहुँ क’ चुकल छी, कए बेर

साहित्य, समाज, नोकरी, परिवार आ

बन्ध-सम्बन्धक बीचि

ओझरा क’ समये नहि द’ सकलियै आइ धरि…

झोल-गर्दासँ बोदा भेल हमरा देखि

हमर हाथमे

समय रखलक हमर कान्ह पर हाथ आ

भावनाक बाढ़िमे भसियाइत हम

अतीतक स्मृतिमे टूटल खेलौना जकाँ

उदास देखैत छी स्वयंकेँ…

कि तखने खिड़की पर उगि अबैत छथि सुरुज

आ हमर हाथकेँ ल’ अपना हाथमे सोहरबैत

नहुँएसँ हमरा कानमे कहैत छथि…

बधाइ हो !

बीत गेल बहुत किछुमे तैयो रहैछ बहुत किछु शेष

एखने भरखर आँगनमे फुलाएल अछि

अपराजिताक पहिल फूल

नव दिनक संग…नवका उमंग लेल।

 

पैघ कवि

कविता नहि थिक अभिनय

शब्दकोश त’ किन्नहुँ नहि

एखनुक समयमे

बड़का ‘कंफ्यूजन’ अछि

कविता आ शब्दक कारीगरीमे

पत्रिकामे छपि गेलासँ

छपबा लेलासँ गतगर पोथी

लिखा लेलासँ भरिगर भूमिका

कि मंच पर चढ़ि

क’ लेलासँ कविताक पाठ…

आ की कोनो सम्मान आ पुरस्कारे

ई प्रमाणित नहि करैत अछि

कोनो कविकेँ कवि हैब

आ ने किनको कहि देलासँ

वा लिख देलासँ

भ’ जाइत छैक केओ

पैघ कवि

आ कि छोटे!

जिनका कवितामे

जतेक अछि कविता

ओ समयक ततेक पैघ कवि।

 

निठल्ला

एहन लोककेँ कि कहबै अहाँ ?

जे दोसराक औँरी पकरि क’

चलैत अछि

सदिखन अपेक्षाक बोझ माथ पर उघने

सिमसल किछु आस

किछु बेदना छातीमे दबओने

डेग बढ़बैत अछि

कखनो गिरैत अछि

उठैत अछि कखनो

कखनो रुकैत अछि

कखनो चलैत अछि

दोसराक औँरीकेँ अपन पैर बुझैत अछि!

 

साँच बाजएसँ पहिने

हमर बाजब

बेजाए भ’ गेल अछि

आइ-काल्हि

से मात्र किछु दिनसँ…

हमहूँ बहुत नीक रहियैक

साँच बाजएसँ पहिने।

 

पेपरवेट

केओ अबथि

बइसथि कुर्सी पर

बतियाथि आ चलि जाथि…

किछु नहि बजैत अछि

निर्विकार, निर्लिप्त

देखैत रहैत अछि

गुनैत रहैत अछि

चुप-चाप

कतेकोक आस

कतेकोक जीवन

कतेकोक पेंशन आ कि

कतेको रौदी-दाहीक

कतए लागल छैक अरंगा

रुकल अछि कतेक माससँ

प्रमोशनक फाइल,

ट्रांसफर प्रपोजलमे छैक कोन लफड़ा,

कतेक गेलै ऑफिस

घर कतेक

उपरसँ नीचा धरि

कोन-कोन बाबूक मुँहमे

लागल छै खून…

कहि सकैत अछि

बहुत किछु…

मुदा, टेबुल पर पड़ल

चुपी लधने

मौन साधनामे

लीन अछि पेपरवेट।

 

दिल्ली दंगाक बाद…

एक

शहरक एहि दंगामे

झरकि गेलैए

चूल्हि

पजरलै नहि कए दिनसँ

सुनगैत रहलैक मुदा

एकगोट मायक

करेज।

 

दू

एहि बेरुका दंगा

काज केलकैक किछु

जमकल छैक किछु लेहू

एमरीदा छापल जेतैक एहिसँ

चुनाव केर पर्चा।

 

तीन

क्रिकेटक कमेंट्री जकाँ

गला फारि क’

पढ़ि रहल अछि समाचार

टी.वी. स्क्रीन पर रिपोर्टर

‘मरने बालों की संख्या अबतक अड़तीस’

कैमरासँ हेरैत शहर…

शहरमे दंगा

दंगामे लोक

जखन कि

किछु शेष नहि अछि

आगि आ धुआँक बीच

सिवाय शव-गृहकेँ।

 

चारि

एहि बेरुका दंगामे

हुनक चूड़ी

फूटि गेलनि हाथ महक

खुण्डी सम्हारि क’

रखने छथि

तहियेसँ…

 

पाँच

ककर घर जरलैक

ककर दोकान

के ककरा मारलकै

किएक?

ककरा लेल के मरलैक

के हिन्दु के  मुसलमान

कतएसँ आएल छल

कोन ठामसँ उठल ई दंगाक बिड़रो

कविता नहि

सवाल अछि हमर ई

दिल्लीसँ।

 

एकतीस दिसम्बरक राति

…की गोधूलिकेँ करोट फेरिते

अन्हार गुज्ज रातिमे निसभेर भेल

सुतल अछि चारू भर दुनियाँ

आ हम एसगर बैसल छी उनीन्ने

ओह!

हम किछु आर रहितहुँ

कतेक निचेन रहितहुँ हमहूँ

हमर मोसकिल ई अछि

की हम कवि छी

जगएबाक अछि हमरा

सभ सुतलाहा सभकेँ…

मध्यमा औँरीमे, बुन्नी भरि सुनौली भोर नेने

जागहे पड़तै

तखने हेतैक एकटा

विशाल सुरुज केर प्रस्फुटन

नहि त’

पुरने साल जकाँ…

‘ग्लोबल वार्मिंग’सँ त्रस्त हएत जीवन

घोट’ पड़त आतंकवादक बिख

भ्रष्टाचारक जाँतमे पिसाइत

आत्महत्या करत किसान

धर्म, जाति आ भाषाक जुन्नामे गछारल देस

मोहनजोदड़ोक देबाल पर पीठ अड़कौने

पाँच सालक बेटीक देह पर देखि हवसकेँ चेन्ह

डेराएत लहासक शिनाख्तसँ…

एहनामे कतबा सुखद अछि ई देखब

जे तीन सए पैंसठ गोट घाओकेँ भोगैत ई पिरथी

कतेक आगि समेटने अपना भीतर

आइ आएल अछि सोझा

नया सालक देहरि पर आ

पिरथीक जनबाक प्रक्रियामे

कतबा दुख अङेजने हम लिखैत छी कविता

तखन, ई कोन नयका साल

हमरा साल नया नहि चाही

चाही हमरा

नया समय !

जेना, बीत जाइत छैक

जाड़, गर्मी आ बरसात

गाछ आ चिड़ै-चुन्मुन्नी

दिन, सप्ताह आ मास

बीत गेल ई साल जेना,

जेना, बीत रहल छी हम

इहो साल तहिना बीत जाएत

एहनामे कोना कहू…

नया सालक शुभकामना !

रातिक बारह बाजएमे एखन,

बहुत देर अछि

एकतीस दिसम्बरक ई आधा राति

एतेक भयाओन किएक

लागि रहल अछि भाइ।

 

नबका साल

आँखिसँ लहू चुअबैत

जेना-तेना बीतल

ई पुरना साल

एक-एक दिन

अभावक थारीमे

बातक अन्न भोकसति देस

आ, घरसँ

गामक चौबटिया धरि

बघनखा पहिरने लोक…

बेकार,

ई कवितामे नव-नव

बिम्ब-प्रतीकक प्रयोग

जखन कि शहर

लहास भेल अछि आ

मना रहल अछि

गिद्ध सभ महाभोज

तखन, कोना कहू

नव बर्षक शुभकामना

देबाल पर नयका कलेंडर

टाङि देलासँ की

लिखलाहा मेट जाइत छैक।

 

अपंग समाज

जखन सड़क पर ठाढ़ भ’

उद्दण्डताक सीमा नाँघि

खिड़की पर चेपा बरसबैत ओ

गँजेड़ी छौड़ासभ

मुहसँ बाहर फेकति धुँआँक संग…

बेटीक नामे अभद्र गारि देने रहैक

कि भेलैक?

खिड़की बंन्न क’

गुब्दी लाधि देलखिन चौधरी जी आ

मूड़ी गोतने रहि गेलखिन पाण्डे जी

जखन सोझामे बैसल बेटीक अंतर-अंग केर

उच्चारण चिबबैत चलि गेलैक लेहँगड़ासभ

काल्हि खन एगोट अबोध नेनाकेँ

सरेआम मारि क’

फेक देल गेल रहैक धारमे

किछु नहि भेलैक

प्रशासनोकेँ भेटल रहैक जबाबमे मात्र

किछु नापल-जोखल शब्द-

‘हमरासभ किछु नहि देखलहुँ

आ ने ककरो पर अछि सुबहा

नहि जएबाक अछि हमरा

थाना-फौदारीमे

एकर कुंडलीएमे दोख छलैक’

एतबे नहि,

स्कूलसँ घुरैत

बारहमीं किलासक बचियाकेँ

लूटि गेलैक इज्जति

ककरो डेग नहि उठलै

सिंह जी सुनबे नहि केलखिन किछु

हमरो नहि फुटल बकार

आँखि मुनि लेलखिन महतो जी

जहिया शान्तिक जरा देने रहैक

दहेजक आगिमे आ

ममताक मुह पर फेकल गेल रहैक तेजाब

तहियो एहिना भेल रहैक

अन्यायक विरुद्ध आब

किछु नहि क’ सकैत छी

इतिहासक सभसँ गहीँर मृत्यु

मर’ चाहैत छी हमरालोकनि

मुह त’ देने अछि भगवान

मुदा, बकार नहि अछि

आँखि आ कान अछि सेहो

मुदा, आन्हर आ बहीर छी

अछि त’ दिमागो मुदा, सुन्न

लोथ अछि हाथ-पैर दुनू

ई पुरा समाज अपंग अछि

हमहूँ आ अहूँ।

 

पानिक समर्थनमे

ई मेघक मोन जेना बहुत व्याकुल लागि रहल अछि आइ

सुनलियैक जे,

दम्माक बेमारीसँ त्रस्त अछि बसात

खटिया पर पड़ल औद्योगिक अस्पतालमे

साँसक देहरि पर छटपटा रहल अछि

ठकमूड़ी लागल अछि जेना गाछ-वृक्षसभकेँ

चिड़ै-चुनमुन्नीसभक सेहो मंद अछि सुगबुगाहटि

ई मकानसभ एखने जागल अछि निन्नसँ

भोरे-भोर दुपहर अंगेजने सुरुजक आँखि सेहो

फुजल अछि एखने

एखने,

आमक फुनगी परसँ हेठ भेल अछि सुरुज आ

खिड़कीसँ द’ रहल छथि हुलकी

हम देखैत छी,

सुरुज, किछु देरसँ गरमा रहल छथि लोहा

क’ रहल छथि काज पर जेबाक तैयारी

जखन कि,

सैंतालीस डिग्री सेल्सियसमे

वाष्पित भ’ हमर कविता…

घोरा जाए चाहैत अछि समुच्चा ब्रह्मांडमे

भरतीय दण्ड प्रक्रिया संहिताक धारा

एक सए चौआलीसकेँ तहत

घरसँ बहराएब अछि मनाही

ऐहि समयमे

एकगोट अनजान शहरमे

आँखिमे भरने आगिक पिण्ड

भरि दुपहरिया…

कखनो,

धारक कछेरमे

कखनो,

पोखरिक मोहार पर

कखनो,

इनारक दूबि पर

आ कि,

कोतवाली चौकसँ सोझे पीच धएने

डी. एम. आवास होइत

थाना मोड़, स्टेशन, शंकरचौक आ

चभच्चा मोड़सँ खुरपेरिया धएने

कविताक धुर पार करैत

घामे-पसीने तर-बतर

गरदनि सुखाएल, मुहचुरू भेल

थाकल-हारल

माथ पर गमछी लपेटने

मुठ्ठीमे दबौने पियास

लहेरियागंज, इन्द्र परिसरमे

एखने आएल अछि सुरुज हमरा अँगना

एक चुरूक पानि माँगए !

पानि !

जे कि बाँचल नहि अछि आब कतहु पिरथी पर

सभसँ पहिने लोकक आँखिमे सुखा गेलैक

फेर सुखएलै धार, पोखरि आ इनार

आइ त’ हमर क’ल सेहो

एनीमियाक गंभीर बेमारीसँ चित भेल अछि

ई बहुत खतरनाक समयमे बीत रहल छी हमरा लोकनि

जखन लोक नहि जानि रहल छथि पानिक मोल

नीलामीक लेल सुखल धारकेँ सेहो लागि रहल अछि बोली

पानि पर राजनीति करैत लोक पर हँसि रहल अछि पानि

ठीके,

ई बहुत खतरनाक समयमे बीत रहल छी हमरा लोकनि

जतए किछु शिष्ट मंडल

क’ रहल छथि पानि बचेबाक वार्ता कए दसकसँ…

आ बीच-बीचमे फ्रीजरसँ निकालि पारदर्शी गिलासमे परोसल जाइत अछि पानि

आओर त’ आओर…

एहि पानिक रंग लाल अछि

आ ई लाल रंग मिलैत-जुलैत अछि हमरा सोनितसँ

ई हमर सोनित अछि आ

हुनका सभक लेल

शीतल पेय

जेना बिला गेल अछि चिठ्ठी आ तार

तहिना बीला रहल अछि पिरथी परसँ पानि

पिरथी परसँ पानि नहि

जीवन बिला रहल अछि

हमरा सभ आब किछुए दिन बाद…

गूगल पर सर्च क’ क’ देखब पानि

पोखरि, धार आ इनारक पेंटिंग बना क’

टाँगब देबाल पर…

जकरा जीबाक अछि कविता

तकरा बचाब’ पड़त पानि

जखन हम बचा’ रहल हेबैक पानि

तखन हम बचा रहल हेबैक कविता

जीवन बचा रहल हेबैक हम तखन

जेना, विचारक बिना नहि भ’ सकैत अछि कविता

पानिक बेतरे तहिना नहि भ’ सकैत अछि जीवन

घुरए पड़त हमरा लोकनिकेँ

पिरथी दिस

प्रकृति दिस…

करए पड़त सुरूआति

पानिक समर्थनमे हस्ताक्षर अभियान

मुठ्ठीमे दबौने पियास

एखने आएल अछि सुरुज हमरा आँगना

एक चुरूक पानि माँगय!

दरअसल पानि नहि!

जीवन माँगय आयल अछि।

 

अथबल ईश्वर

ईश्वर !

की चाही अहाँकेँ?

फरिछा क’ कहू

की चाही अहाँकेँ?

एकगोट निरीह प्राणीक रक्त

पाखण्डक उद्योग चलबैत

हाड़-मासुक देहकेँ नोचि-नोचि खाइत

त्रिपुण्डधारीक आडम्बर युक्त पूजा पाठ

सोना चानीक चढ़ौना आ कि रं… नाच

की चाही?

जनेऊ धारीक चापलूसी

आदमीसँ आदमीक छुआछूत

भेदभाव, ऊँच-नीच, दुराचार

फूल-पात गंगाजल पूरित

ताम्र पात्रसँ स्नान

धूप-दीप नैवेद्य दूध-घी संग

चरणामृतक पान!

ईश्वर!

की चाही अहाँकेँ?

अच्छा ओ बुधनी !

जे डेन पकड़ने अबोध नेनाकेँ

दू क’र अन्न आ दूटा टकाक आसमे

स्वयंकेँ परताड़ि सदिखन

घरे-घर करैत छैक

लोकक चूल्हि चौका, भाड़ा बर्तन

ओहि बर्तनक चमकमे देखैत अछि

नेनाक पढ़ेबाक सपना

आ एहि सभसँ पहिने नीत्तह निपैछ

मंदिरक कोना-कोना

मोने-मोन करैत मिनती-निहोरा

एहि भरोसमे किंवा एकदिन

मेट लेबैक अहाँ सभटा लिखलाहा बिपति

आँखिमे हेलैत सपना, भाप जकाँ उड़ियाइत

देखा रहल छैक अकासमे

भरोसक सही अर्थ ठीक-ठीक

भरोसे छैक एखन धरि शब्दकोशमे

से केकरा साहस छैक

जे बुझौतैक बुधनीकेँ जा क’

कोन अनर्गल काज केलकैक बुधनी?

जे सुन्नहटि पाबि ओ चाननधारी

खींची लेलकैक डाँड़सँ नूआ…

मंदिरक कोनमे

अधर्म आ पापक भालासँ बेधल

श्रद्धासिक्त अबलाक लेहूक टघार

माँटिकेँ सोंखैत अहाँ नहि देखलियैक?

कतए गेल रही अहाँ?

किएक ने बचौलियैक बुधनीक इज्जति

किएक ने देलियैक सौसेँ गामक मुहमे झीक

जखन बुधनीकेँ कहल गेलैक बदचलनि

किएक ने पकड़लियैक ओहि पाखण्डी

बड़का पगड़ी बला इज्जतिदार

त्रिपुण्डधारीक हाथ महक छौंकी

जे मंदिरक मोख नाँघला उतर

फोरि देलकैक सौसेँ देह दू दालि क’ दोदरा

ओहि अबोध नेनाकेँ अछूत कहि

बुद्धक एतेक दिनक बाद…

ई प्रश्न फेरसँ ठाढ़ करब

कि हएत उचित?

ईश्वर!

की अहाँ छी?

जँ अहाँ छी!

त’ कतए गेल रही अहाँ?

साँच-साँच कहू

किएक ने ठाढ़ भेलियैक

अत्यचारक खेलाप

अथबल ईश्वर।

 

कविता हमर प्रेमिका अछि

लालटरेस आँखिक नीचा

माउस फूलि गेल अछि हमरा

पीपनी पर ओँघा रहलि अछि निन्न

बहुत निनवासलि अछि जेना

खसि रहलि अछि

ध’ब-ध’ब पिरथी पर

हम छी जे

सुतबाक नामे नहि ल’ रहल छी

कए दिन, कए रातिसँ…

हमरा भीतर एकटा युद्धक

शुरुआत भ’ चुकल अछि

विचारक युद्ध !

मारए नहि चाहैत छी हम

ओहि सभ विचारसभकेँ

हृदयमे भरि लेबए चाहैत छी आ

सहेज लेबए चाहैत छी ओ किताब बला रैक

लेकिन, हम जतेक ओकरा स्पर्श करै छी

जतेक ओकरा चाहैत छी हम प्रेम करए

शब्दक आँखिये हम हुलकी मारए चाहैत छी

ओकर आँखिक ब्रह्माण्डमे जतेक

कि ओ ततेक आओर

छितनारे भेल जा रहलि अछि

भरि राति अपन लाइब्रेरीमे बैसल

बुनैत रहलहुँ एकटा गहीँर चिन्तन

शून्यक अंतिम छोड़ धरि

जाइत रहलहुँ बेर-बेर

घुमैत रहल मस्तिस्कक चारू कात अकासगंगा

हम ओकरामे आ ओ हमरामे

करैत रहलि यात्रा

हजारो मीलक यात्रा

बेर-बेर टकराइत रहल

मस्तिष्कक भीतसँ विचारक थोका

विचारसँ कविता आ

कवितासँ ब्रह्माण्ड रचबाक क्रम

चलैत रहल हमरा भीतर लगातार

आ अनुभव करैत रहलहुँ एगोट अजीब छटपटाहति…

कहाँदनि प्रेम होइत छैक त’

एहिना बउर जाइत छैक लोक अनन्तमे

एहिना राति-राति भरि निन्न नहि अबैत छैक

किछु एहने सन होइत छैक छटपटाहटि

भीतर किछु थिर नहि रहि जाइत छै साइत

हमर कविता हमर प्रेमिका अछि

आ हमर प्रेमिका हमर जीवन

आ ईश्वर सेहो

कोइ जीवन आ ईश्वरक बिना

की जीवि सकैत अछि ?

जीवि सकैत अछि कविताक बिना।

 

पुरान कविताकेँ पढ़ैत 

अपन लाइब्रेरीक बुकसेल्फसँ

किताब नहि

बहार कएलहुँ अछि पुरना डायरी,

एकदम्म शुरुआती दिनुका।

पुरना डायरी महक

अपन एकटा पुरान कविताकेँ उनटेलहुँ अछि

आ थाह’ लगेलहुँ अछि

आजुक अपन कविताक कथ्य आ विचारकेँ

आइ अपन ओजन फड़िच्छ भेल अछि—

भाषा आ शिल्पक

न’ब खोज कएलहुँ अछि आइ हम

पुरान कविताकेँ उनटाएब

मोन पाड़ब थिक पुरान अनुभवकेँ,

बीतल समयकेँ

फेरसँ जीयब थिक

पुरान कविताकेँ पढ़ब।

 

माथमे घुरियाइए कविता

कए दिनसँ…

बड्ड मोन करैए

फोन लगा क’ करी अहाँसँ

भरि मोन गप

कए दिनसँ…

माथमे घुरियाइए कविता

अहाँक प्रेम पर

हमर कविता

भारी पड़ि रहल अछि आब।

 

विचारक आँच पर कविता

चिक्कसमे जेना पानि मिज्झर क’

खूब सनलाक बाद…

बेलल जाइछ चकला पर

पूरा नाप-तोल आ गोलाइक संग

फेर आगि पर ताबामे सेक

फुलाओल जाइछ रोटी,

रोटी सुगन्धि छिड़ियबैत छैक तब

पहिले भीतर फेर बाहर

जीवन संघर्ष आ भूखक चढ़ान पर

भावमे शब्द मिज्झर क’ तहिना

पूरा नाप-तोल आ गोलाइक संग

सेदल जाइछ…

विचारक आँच पर कविता

कविता रोटी जकाँ होइत छैक

रोटीक फूल जकाँ सुन्दर

कविता करबाक लेल

रोटी सेदएमे दक्ष होबाक चाही पहिने

रोटी कविता अछि भूखक।

 

अहाँ बाँचल रहब

(प्रिय कवि नारायणजीक लेल)

अन्तसमे लगा’ लेने अछि खोँता

तेहन ने स्थायी-भाव बनि

जे घोरैत रहैत छी अहाँ सदति कवितामे उजास।

कविता छथि  संजीवनी अहाँक लेल

जाहिमे जिबैत छी अहाँ अहर्निश

गहिओने स्नेह-दीप्तिकेँ

जे आलोकित कएने अछि अहाँक जीवनक बाट

आ अदनामे देखैत छी अहाँ मूल्य

जेना,

माटिक त’रसँ माटि ताकि अनैत अछि कुम्हार।

चानक शीतलतामे जीवन-रससँ डगडग

अमा माय जकाँ…

जे ककरो लेल कोनो भेद नहि करैत छथि

हे हमर प्रिय कवि,

धरती पर जखन देखैत छी इजोरिया।

फूलमे, पातमे

गामक बाट-घाटमे

चानमे, सुरुजमे

उत्तर-दक्षिण, पुरुब आ पच्छिममे

असाध्य शून्यमे सेहो

कविते देखैत छी अहाँ।

अहाँ सेबैत छी कविता

कविते सपनाइत छी,

ओछबैत छी कविता,

कविते नहाइत छी

बिम्ब आ प्रतीक त’ सिरहना थिक अहाँक

बहैत अहाँक कविता अहाँक धमनीक लेहूमे

अनवरत विद्यमान अछि

श्वास-उच्छवासमे,

मनोरथ आ आसमे

रचने कतोक सुन्दर सृष्टि।

अनेक पीढ़ीक कथा कहैत अहाँक कविता

आठो पहर सुतैत नहि,

अपना लेल सपनाक घर तकैत अछि

रुमाल पर फूल काढ़ैत

सियान भेलि सुजाता

चढ़ैत दिनक धाह पिबैत

कवितामे नाम पाबि,

बिहुँसैत छथि कवितामे

उचिते कहैत छथि युगचेता रचनाकार तारानन्द वियोगी—

‘अख्यास करबाक लेल अहाँक कविताक पृष्ठभूमि

पहुँचए पड़त हमरा लोकनिकेँ यात्रीजी लग।’

वैश्विक स्पर्धाक घोड़दौड़मे

ड्यौढ़ी पर आएल बाजारसँ दुखित

अपनाकेँ हेरैत सहजताक संग

कविताक लैत छी सहारा।

हे हमर श्रेष्ठ कवि!

कविता जीवित राखत अहाँकेँ

जाधरि जीवित रहत विश्वसनीय डेग उठबैत मनुष्यता

अहाँ बाँचल रहब कवितामे एनक-एन

सूर्य-किरणमे उपस्थित ऊष्मा

आ आँखिमे बसल जल सन।

 

गामक इतिहास

सुन्न भ’ गेलैक

कोयला पोखरिक मोहार

डिहुलिया परहक आमक गाछ

जे तीन कठ्ठा मे चतरल छलै

काटि देल गेलै…

गाछ,

जकर छाहमे…

कए पुस्ता खेलने छलै

चिक्का-चिक्का

जेठ- बैसाखक टटहवा रौदमे

जलखै खाइ छलै जोन- हरबाह

सुस्ताइ छलै बाट-बटोही छाहमे

कएन जुगसँ दैत रहलैक जे…

नेहक गवाही

‘वसुधैब कुटुम्बकम्’ केर समाद

अन्हर-बिहारिमे

भीषण बाढ़िमे

असंख्य चिड़ै-चुनमुन्नीक आश्रय…

गाछ जे

देखैत आएल छल

पीढ़ी-दर-पीढ़ीकेँ

बच्चासँ सियान आओर

फेर बूढ़ होइत आ

एक दिन ओकरा अपन

असली गंतव्य धरि जाइत सेहो

जाहि गाछसँ गाछ नहि!

गाम जानल जाइत छलै

हहा क’ आइ ओ गाछ खसि पड़लैक

असलमे गाछ नहि

गामक इतिहास खसि पड़लैक।

• मिथिलाक एकटा गाम भटचौड़ाक कोयला पोखरिक डिहुलिया परहक आमक गाछ कटलाक बाद…  

 

परदेस

ई दागक कपड़ा

काँचे बाँसक रंथी

ई कोहा, कौड़ी

कुश-तील, गंगौट

गोइठाक आगि

अचिया

ई छौड़झप्पी

नह-केस

श्राद्ध, सम्पिण्डन…

ई सभटा रीत

एहि दुनियाँक छै

मीत!

लोक ओना मरि त’ तखने जाइए

घर छोड़ि जखन

जाइए परदेस।

 

कि होबाक चाही आजुक हमर शब्द

(पुलवामा हमलामे भेल शहिद जवानसभकेँ समर्पित)

एकटा अजीब तरहक छटपटाहटि अछि

हमरा भीतर कए दिनसँ…

स्वयंसँ अछि कए गोट सवाल

की होबाक चाही आजुक हमर शब्द ?

की हमर कविताक विषय

होबाक चाही ओ

जे अछि हमरा जनति अवर्णनीय

स्वयं अपन लेहूसँ लिख देलक अछि जे

देशक सिमान पर एगोट अंतहीन कविता

फेर शब्दकोशसँ कोन शब्द लाबि ताकि क’ हम

मुदा,

हम कहए चाहैत छी एगोट मायक किछु शब्द —

‘नेनपनमे चोरा क’ खएलहा माटिक रिनसँ त’

उरिन भ’ गेलहुँ अहाँ

मुदा, हमर की?

जे नाङटे लेटाइत नुका रहैत छलहुँ आँचरिमे

आ हम ओँघाएत चलि जाइत छलहुँ एकटा दोसर दुनियाँमे

ई तीन रंगा चदरि ओढ़ि किए एलहुँ अँगना आइ

हमर आँचरि एखनो अहाँ लेल ओछ नहि छल

जकर सुगबुगाहटि मात्रसँ

चेहा क’ उठि जाइत छलहुँ हम

कतेक कालसँ करैत छी कौलति

उठि नै रहल छी अहाँ’

जखन ई सुनैत छी कोनो मायक विलाप…

तखन थरथराए लगैत अछि हमर हाथ

एक-एक वाक्य गढ़बाक क्रममे

ठमकि जाइत अछि हमर कलम आ

अगिला पाँति धरि जाइत-जाइत

छोड़ि दैत अछि शब्द हमर संग

आ फेर उमड़ैत अछि मोनमे बहुत रास प्रश्न

सिंधु आ झेलम नदी केर पानि किएक भ’ गेल अछि ललोन

उज्जर दप-दप गाँती बन्हने प्रकृति

लगैत अछि मलीन किएक

केसर आ गुलाबक कियारीमे

कोना उगए लागल बारूद

धरतीक स्वर्ग आइ शूल जेना गरैत अछि हृदयमे

उरीसँ पुलवामा धरि कतेक बदलल अछि देस

हम युद्ध त’ जीत लेलहुँ

की जीत पेलहुँ आतंकवाद?

पाँच आखरक एकगोट शब्द नहि जानि

लील लेलक कतेक जीवन

किछु लिखबाक मोन नहि क’ रहल अछि आइ

गुनधुन्नीमे छी

ई जे उजड़लैक अछि कतेको घर

फुटलैक अछि बम-बारूद

बहलैक अछि लेहूक घार

देसक हिफाजत लेल

आ कि…

हरान करैत अछि ई सभ प्रश्न

तखन, हमरा होइत अछि

अपने देशप्रेम पर संदेह।

 

अर्जीनामा

मी लॉर्ड!

गीता पर हाथ राखि क’ कहैत छी

हम जे कहब सुप्पत कहब—

आइ फेर अजीब तरहक

घिघिएनाइकेँ स्वर आएल अछि

हमरा लाइब्रेरीसँ…

फेर शब्दकोशमे

एकटा शब्दकेँ गरदनि मोकि

क’ देने छैक हत्या आ

कतेको भेल अछि खूने-खुनाम

तोड़ि देने छैक पैर-हाथ कतेकोक

मुह, कान, नाक, आँखि, कपार

भसकल छैक।

चौक-चौराहा, बाट-घाट,

मन्दिर-मस्जिद

मॉल हो वा सिनेमाघर

रेलवे स्टेशन वा हाट-बाजार

शब्दक संग कएल जाइत अछि दुर्व्यवहार

अर्थक अनर्थ भ’ रहल अछि

मी लॉर्ड!

जेना, एही शब्दक अर्थ देख लेल जाउ हजूर

लॉर्ड, माने भगवान

कोनो मनुखकेँ भगवान सम्बोधित करब

कतेक उचित अछि ?

कि ठीक-ठीक मेल खा रहल अछि एकर अर्थ शब्दकोशसँ

हत्या पर हत्या भ’ रहल अछि शब्दकेँ

एकटा नमहर असमसान होबाक

ओरिआओनमे अछि शब्दकोश

आइ धरि एकहुँटा केश दर्ज नहि भेलैक शब्दक पक्षमे

नहि भेलैक तैयार केओ दैक लेल गवाही

कानसँ ठोकराइत अश्लील ध्वनि हमरा

निन्नसँ जगा दैत अछि बेर-बेर

शब्द ककरो बपौती नहि अछि मी लॉर्ड !

जे, जकरा जेना मन हेतैक

तेना खेलेतैक शब्दक जीवनसँ…

हमर याचिका दर्ज कएल जाउ

हमर न्यायक गुहारि पर विचार कएल जाउ

मी लॉर्ड!

हम कविता सुनब’ नहि एलहुँ अछि

हमरा केश दर्ज करेबाक अछि

अपन पीढ़ी बचेबाक अछि हमरा।

 

हमरा भीतर पहाड़ अछि

पहाड़ पर चढ़ैत

दू बर भेल देखैत छी हम पिरथीकेँ

अपन छाती पर अङेजने

समुच्चा पहाड़ आ

पहाड़क तरहथीमे

सुस्ताइत दार्जिलिंग भेटैत अछि हमरा

हम ओकर पत्तीकेँ छूबि क’ देखैत छी

आत्मविश्वाससँ भरल अछि

गात-गात ओकर…

पहाड़क कान्ह पर चढ़ैत मेघ आ

निहुरल अकास

चारु भरिसँ बतियाइत

ग्रह, नक्षत्र, चान-तरेगन आ

ऋचाक उच्चारण करैत बसात

भेतैट अछि हमरा

देवदारक गाछसँ अड़कल शून्यमे विचारमग्न

हम हेल रहल छलहुँ अकासमे

कि मस्तिष्कसँ टकराइत अछि एगोट विचार—

‘कालीदासक कामर्त यक्ष

अपन विरहाकुल प्रेमिका धरि पहुँचेबाक लेल समाद,

विचरैत श्याम वर्णी एही मेघक कोनो

वंशजकेँ त’ नहि बनौने छलथि

अपन समदिया’

एहि अप्रतिम कल्पनाकेँ जिबैत

प्रसन्ताक वायुमंडलसँ घेराएल

आगु बढ़ैत छी हम आ

पहाड़क तरहथीमेसँ उठा क’

कनमाभरि पहाड़ बिग दैत छीयै अकासमे

कि घाराजोड़ी करए लगैत अछि

बसात आ मेघ

एकटा सौँस उदासी ओढ़ने

भेटैत अछि हमरा

कनिके आगू…

एकटा झड़ना अपन आत्मकथा कहैत

गति दैत अछि हमरा झड़ना आ विस्तार सेहो

हम खहरि जाइत छी ओकरा भीतर आ

बढ़ल जाइत छी ओकरामे डूबि क’

अपन गन्तव्य दिस

अदृश्य पदचिन्ह अंकित करैत…

पहाड़ अछि

पहाड़ पर अन्हार अछि आ

हमरा हाथमे कलम अछि

हम इजोत करबाक बेओँतमे छी

बाहर कम आ हमरा भीतर

बेसी अछि पहाड़

शान्त, स्थिर आ गंभीर

पहाड़ संकल्प बनि क’ ठाढ़ अछि हमरा भीतर

भीतरक पहाड़मे सेहो लहलहाइत अछि

एकगोट दार्जिलिंग

अकासमे पहाड़ पर भेटैत अछि कविता आ

कवितामे खहरबा लेल आतुर नदी

पहाड़ परसँ घुरि क’ आएल छी हम

हृदयमे भरि क’ लाएल छी हम

पहाड़, जंगल, अकास ,गाछ-वृक्ष आ कविता

जीबाक लेल शेष जीवन।

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